भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कचरो / जितेन्द्र सोनी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जितेन्द्र सोनी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:00, 27 जून 2017 के समय का अवतरण

म्हारै सिरखै
ऊजळै गाभां वाळां सारू
हिल स्टेशन रो म्यानो हुवै-
नवी जिग्यां,
नवा चितराम
घूमणो-फिरणो
खावणो-खरीदणो
मौज-मस्ती
अैसो-आराम।

पण जद पूरा हुवै
म्हारा अै सगळा काम,
सरू हुवै
आं रो ओ काम-
कूटळै रै ढेर मांय
ढूंढै खाली बोतलां
चुगै मोमिया थैला
टूट्योड़ी चप्पलां
अर सगळां नै सोवणी तरियां अंवेर
हो जावै खुस।

जित्तो बेसी कचरो
बित्ती ही बेसी खुसी।
सैलाणियां रो सूगलवाड़ो
बणज्यै आं रो रिजक।

ओ विचारां रो फरक हो सकै
पण
आपां सगळा चावां हां-
कम सूं कम कचरो
अर अै चावै बेसी सूं बेसी।

म्हारो कचरो मिटावणो
स्हैर नैं सोवणो बणावण री आफळ है
पण कचरै रो मिटणो
खिलवाड़ है आं रै पेट सागै।

नीं मुकै कचरो
नीं मुकै आं री जीवण-आस।

कुण सोच सकै-
कचरो इतणो हो सकै
जीवण माथै भारी।