भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घाणी रौ बळद / वाज़िद हसन काज़ी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वाज़िद हसन काज़ी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:46, 27 जून 2017 के समय का अवतरण
अंधारै-अंधारै जाग जाऊं
मसीन ज्यूं चालूं
नव बजियां री लोकल पकडूं
आखै दिन गोता लगावूं
फाइलां रै समंदर
चक्करघाण हुयौ
पकड़ंू फेरूं लोकल
आथडूं भीड़ में
थाकल बळद जिसी हालत
बावड़ंू घरै
टीवी देखूं
सोय जावूं
आ ही म्हारी जीवा जूण
फैरूं सुबै
वा ई लोकल
वा ई फाइलां
वा ई भीड़
म्हैं
कैवण नै तो मरद
पण असल में घाणी रौ बळद।