भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चाल आभो मिणां / अशोक परिहार 'उदय'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक परिहार 'उदय' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:20, 28 जून 2017 के समय का अवतरण
फूटरी फरी
जूण नैं रुळायां बगै
धरा-धूड में रे बावळा बटाऊ
कीं पांवडा तो मे'ल धक्कै
थोड़ो सो ई सरी
भेळो तो कर आतमबळ
कर हेलो दसूं दिसावां नैं
ताकड़ी रै तोल
मिल्या है मूंघा
मोती सा खिण
जिका बगायां जावै
सुगन-सिरधा रै डर सूं
अडिग अर काळजै आळा
मिनखां ई बदळी है
बगत री अटल दिसावां
ओ जाणतां थकां ई
थूं डरपै बावळा
पग उठा, चाल
आपां आभो मिणां।