भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अकड़ / मधु आचार्य 'आशावादी'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधु आचार्य 'आशावादी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

12:40, 28 जून 2017 का अवतरण

दूर-दूर तांई
पसरयोड़ी रेत
जिणनै कोनी किणी सूं
कोई हेत
उण सूं भी राखै
तिरछी निजरां
ऊभो रैवे आपरी अकड़ मांय
अेकलो रूंख
कोई मिलै का नीं मिलै
                             ष्उणनै नीं परवा
कोई कीं देवै का नीं देवै
उण सूं ई बेपरवा।
खुद किणी रै
नेड़ै नीं जावै
हारयोड़ै मिनख नै
चला ‘र बुलावै
मरणो जाणै
झुकणो नीं आवै
आभै साम्हीं
अकड़ ‘र ऊभो हुय जावै,
रूंख री आ अकड़
जबरी है।