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"भूख : चार / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर
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घर में भी बसै
पेटां सूं अळगी
सगळां री
न्यारी-न्यारी भूख
जकी नीं मिटै
जीम्यां जीमण।
सुआरथ लपेटती
आ भूख भखै
नाता-रिस्ता रा मोह
आपसरी रा हेत
फोड़ै हक री हांडी
जकी भोळायÓर जावै
घर रा बडेरा!