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"म्हारो गांव : अेक / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर

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आस रो डूंगर है
म्हारो गांव
इण रा भाखर
टूटै नीं किणीं सूं
ईसर-परमेसर
परकत खसै तोड़ण
जुगां सूं
म्हारै गांव में।

अठै
अटल ऊभी है
रेत रै कण-कण
जीया-जंत में
उतरती-पळती
पीढी दर पीढी
भरोसो बंधावती
अमर है आस
म्हारै गांव में!