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घर
परवार
अर समाज मांय
म्हूं
घणकरी बातां
सै'न करूं
परम्परा समझ'र
अणदेखी करदयूं
पण
अन्याय रै बखत
म्हारी मुट्ठयां
क्यूं कसीज जावै
म्हूं
बोलूं
अर बण जावूं
तूम्बै दांईं
परमेसर
कद होसी परगट
पंचां में।