"क़तआत / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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एक हो जायेंगे इक दिन जहनो - दिल जुड़ जायेंगे | एक हो जायेंगे इक दिन जहनो - दिल जुड़ जायेंगे | ||
− | और मुसाफिर | + | और मुसाफिर अपने-अपने मोड़ पर मुड़ जायेंगे |
− | बालो - पर भीगे | + | बालो - पर भीगे हुए हैं, सूख जाने दो जरा |
− | पेड़ | + | पेड़ पर बैठे परिंदे , खुद-ब-खुद उड़ जायेंगे |
07 | 07 | ||
गाल गुलाबी, बाल सुनहरे, और अदा में भोलापन | गाल गुलाबी, बाल सुनहरे, और अदा में भोलापन | ||
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हम भी बहुत गरीब हैं, तुम भी तुम भी बहुत गरीब | हम भी बहुत गरीब हैं, तुम भी तुम भी बहुत गरीब | ||
− | शायर | + | शायर ने हँस के ये कहा इक दिन अदीब से |
मजबूर हो के करते हैं इजहारे-हाले-दिल | मजबूर हो के करते हैं इजहारे-हाले-दिल | ||
हम क्या करें हैं हमको, मोहब्बत 'रक़ीब' से | हम क्या करें हैं हमको, मोहब्बत 'रक़ीब' से | ||
पंक्ति 60: | पंक्ति 61: | ||
जिस्म दो हैं मगर एक है ज़िन्दगी | जिस्म दो हैं मगर एक है ज़िन्दगी | ||
ग़म भी दोनों का इक, दोनों की इक खुशी | ग़म भी दोनों का इक, दोनों की इक खुशी | ||
− | मैं | + | मैं हूँ एक चाँद आकाश पर प्यार के |
− | और तू है | + | और तू है मेरी जाँ मेरी चांदनी |
12 | 12 | ||
− | लहू से सींचती है, | + | लहू से सींचती है, दूध, माँ जिसको पिलाती है |
− | बड़ा | + | बड़ा होकर वो बच्चा, माँ का क्यों आदर नहीं करता |
सबब इसका है कुछ माहौल, और कुछ परवरिश उसकी | सबब इसका है कुछ माहौल, और कुछ परवरिश उसकी | ||
− | जो | + | जो माँ के सामने अपना, वो नीचा सर नहीं करता |
13 | 13 | ||
माँ को मौसी, मौसी को माँ कहिये तो कोई बात नहीं | माँ को मौसी, मौसी को माँ कहिये तो कोई बात नहीं | ||
पंक्ति 88: | पंक्ति 89: | ||
आग नफ़रत की न भड़केगी न भड़केगी कभी | आग नफ़रत की न भड़केगी न भड़केगी कभी | ||
17 | 17 | ||
− | पिन खोली और मुँह | + | पिन खोली और मुँह में दबाई |
हाथ उठाए सँवारे बाल | हाथ उठाए सँवारे बाल | ||
खेल हवा ने खेला था जब | खेल हवा ने खेला था जब | ||
पंक्ति 115: | पंक्ति 116: | ||
आपकी बात ही क्या, आप तो हैं हिन्दी दां | आपकी बात ही क्या, आप तो हैं हिन्दी दां | ||
हाँ, मगर हमको है इस उर्दू जुबां से उल्फत | हाँ, मगर हमको है इस उर्दू जुबां से उल्फत | ||
− | सर के ऊपर से निकल जाती है हिन्दी | + | सर के ऊपर से निकल जाती है मुश्किल हिन्दी |
− | और उर्दू से मुझे मिलती है बेहद लज़्ज़त | + | और उर्दू से मुझे मिलती है बेहद लज़्ज़त |
+ | 23 | ||
+ | हो दिल मरज़ दूर भला कैसे के अब तो | ||
+ | मँहगाई को मुफ़लिस पे दया तक नहीं आती | ||
+ | मुश्किल से महीने में बचाता है वह जितना | ||
+ | उतने में तो खाँसी की दवा तक नहीं आती | ||
+ | 24 | ||
+ | ज़िन्दगी के दिन कटे आओ जवाँ रातें करें | ||
+ | बंदिशें अब ख़त्म सारी बेसदा बातें करें | ||
+ | जिस्म का रिश्ता था फ़ानी, रूह तो है जाविदां | ||
+ | जब, जहाँ, जी भर के चाहें हम मुलाक़ातें करें | ||
+ | 25 | ||
+ | दिल की गहराई से यारब हम तुम्हें करते हैं याद | ||
+ | हर घड़ी, हर लम्हा रखना फूल से बच्चे को शाद | ||
+ | जन्मदिन पर 'आप' को आशीष देता है 'रक़ीब' | ||
+ | नानियों, माता-पिता, मौसी व मामाओं के बाद | ||
+ | 26 | ||
+ | रंग, अबीर, गुलाल लगाकर फूलों की बौछार करें | ||
+ | फ़ागुन आया छोड़ के नफ़रत प्यार करें, बस प्यार करें | ||
+ | छोटों को दें, बड़ों से लेकर, आशीर्वाद आज के दिन | ||
+ | होगा बहुत मुनाफ़ा इस में आज यही व्योपार करें | ||
+ | 27 | ||
+ | आ जा तू किनारे पे न कर मुझको परेशान | ||
+ | तोड़ा है जो सिगनल तो करूँगा तेरा चालान | ||
+ | ग़लती से भी आइन्दा कभी ऐसा न करना | ||
+ | ट्रैफिक के सिपाही से बचेगी न तेरी जान | ||
+ | 28 | ||
+ | गुज़र गया है जो बचपन वो याद कर लेना | ||
+ | मिले जो वक़्त कभी हमको याद कर लेना | ||
+ | फ़लक के चाँद सितारे भी तुझको छूने हैं | ||
+ | मगर ज़मीन के ज़र्रों को याद कर लेना | ||
+ | 29 | ||
+ | वो कहाँ है, कहाँ है, कहाँ है मियाँ | ||
+ | हाले-दिल मेरा उस पर अयाँ है मियाँ | ||
+ | ढूँढती हैं निगाहेँ जिसे रात-दिन | ||
+ | कोई बतलाये मुझको जहां है मियाँ | ||
+ | 30 | ||
+ | ये सवाली जवाब क्या जाने | ||
+ | ख्वाहिशे-दिल गुलाब क्या जाने | ||
+ | शिद्दते-दीद चश्मे नम की 'रक़ीब' | ||
+ | "उसके रुख़ का नक़ाब क्या जाने" | ||
+ | 31 | ||
+ | चालाक भाभी - होली में मस्ती | ||
+ | भिगोलो दूर से मुझको, उड़ालो रंग जी भरकर | ||
+ | कहा भाभी ने देवर से, न छूना मेरे "वो" दिन हैं | ||
+ | 32 | ||
+ | "दिखाई देती हैं खुशियाँ तमाम आँखों में | ||
+ | हैं बेक़रार बहुत लब न जाने क्या कह दें" | ||
+ | 33 | ||
+ | "पलभर की हँसी से बनी तस्वीर बहुत खूब | ||
+ | बेहतर हो ये जीवन, जो हमेशा ही रहें खुश" | ||
+ | 34 | ||
+ | उजाला कम है, समझ में ये बात आती है | ||
+ | भरम है सबको अंधेरा नहीं "चराग़" तले | ||
+ | 35 | ||
+ | बेकार भटकती है कहाँ, सुन तू हवा ले चल | ||
+ | ऊपर से समुन्दर के मुझको तू उड़ा ले चल | ||
+ | प्यासी है बहुत धरती, हम प्यास बुझाएंगे | ||
+ | ज़िद छोड़ हवा मुझको बादल ने कहा ले चल | ||
+ | 36 | ||
+ | अब किसी भी बात का कोई बुरा माने नहीं | ||
+ | ऐ जहां वालो सुनो हम हो गए हैं साठ के | ||
+ | 37 | ||
+ | न खाई न झूठी क़सम खाएंगे हम | ||
+ | जुदा हो के तुझसे न रह पाएंगे हम | ||
+ | यक़ीं गर न हो देख लो आज़माकर | ||
+ | बिछड़ने से पहले ही मर जाएंगे हम | ||
+ | 38 | ||
+ | सज गया है फ़लक चाँद की दीद है | ||
+ | हो मुबारक तुम्हें, ईद है, ईद है | ||
+ | सब मोहब्बत करें, हो न बुग़ज़ो-हसद | ||
+ | इस मुबारक घड़ी की ये ताकीद है | ||
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17:02, 1 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
क़तआत
क़तआत
01
बिखरे पड़े हैं बेर ज़मीं पर हरे हरे
बेरी की डाल किसने हिलाई है कौन है
अन्याय किसने नन्हें फलों पर किया है ये
दुर्गत भला ये किसने बनाई है कौन है
02
चाँद सा चेहरा तेरे चहरे को मैं कैसे कहूँ
क्यों कि तू है आदमी, और आदमी है बेमिसाल
ये जो सूरज है, नहीं कुछ आदमी के सामने
आदमी इश्वर की रचना में है सबसे बाकमाल
03
चन्द्रमा पर तू बाद में जाना
पहले धरती बदल समाज बदल
सुन समय की पुकार सुन ऐ 'रक़ीब'
कल की मत सोच आज, आज बदल
04
दर हकीक़त आदमी का फ़र्ज़ है
आदमी को रब से डरना चाहिए
माँ की इज्ज़त है ज़रूरी दोस्तो
बाप का आदर भी करना चाहिए
05
दूर से देखते ही रोज सलाम
उसकी ख़िदमत में अर्ज़ करता हूँ
कोई लेता नहीं सलाम न ले
मैं अदा अपना फर्ज़ करता हूँ
06
एक हो जायेंगे इक दिन जहनो - दिल जुड़ जायेंगे
और मुसाफिर अपने-अपने मोड़ पर मुड़ जायेंगे
बालो - पर भीगे हुए हैं, सूख जाने दो जरा
पेड़ पर बैठे परिंदे , खुद-ब-खुद उड़ जायेंगे
07
गाल गुलाबी, बाल सुनहरे, और अदा में भोलापन
मेरे साक़ी की आँखें हैं नीली नीली थोड़ी सी
अर्ज़ करूँ क्या तुमसे लोगो, मैं कोई मयनोश नहीं
साक़ी की बातों में आकर, मैंने पी ली थोड़ी सी
08
हादसों से खुशी हादसों से है ग़म
हादसों से भला कौन है बच सका
हादसों में घिरी ही रही जिन्दगी
जिसमे तू बन के आई बड़ा हादसा
09
हम भी बहुत गरीब हैं, तुम भी तुम भी बहुत गरीब
शायर ने हँस के ये कहा इक दिन अदीब से
मजबूर हो के करते हैं इजहारे-हाले-दिल
हम क्या करें हैं हमको, मोहब्बत 'रक़ीब' से
10
इन्सानियत की आँखों से आँसू निकल पड़े
ज़ुल्मों - सितम की देश में बरसात देखकर
रोता है बात करने से पहले वो आदमी
आया है जो भी हालते गुजरात देखकर
11
जिस्म दो हैं मगर एक है ज़िन्दगी
ग़म भी दोनों का इक, दोनों की इक खुशी
मैं हूँ एक चाँद आकाश पर प्यार के
और तू है मेरी जाँ मेरी चांदनी
12
लहू से सींचती है, दूध, माँ जिसको पिलाती है
बड़ा होकर वो बच्चा, माँ का क्यों आदर नहीं करता
सबब इसका है कुछ माहौल, और कुछ परवरिश उसकी
जो माँ के सामने अपना, वो नीचा सर नहीं करता
13
माँ को मौसी, मौसी को माँ कहिये तो कोई बात नहीं
माँ के मरने पर बच्चे को मौसी पाला करती है
ममता से भर देती हैं मन खाला हर इक बच्चे की
कोई नहीं कर सकता ख़िदमत जितनी खाला करती है
14
मुफलिसी का तजकरा करता है क्यों हर बात पर
शुक्र कर, तू जो भी है, जैसे भी हैं हालात पर
एक दिन तक़दीर सँवरेगी तेरी भी ऐ 'रक़ीब'
नेकनीयत और भरोसा रख ख़ुदा की जात पर
15
नित नये अन्दाज से ये जिस्म अपना बेचने
शाम हो जाते ही आते हैं सभी फुटपाथ पर
दोष इनका कुछ नहीं है ये तो है क़िस्मत का खेल
कोई महलों में हुआ पैदा कोई फुटपाथ पर
16
न्याय कीजेगा तो ये अन्याय ख़ुद मिट जाएगा
स्वर्ग बन जाएगा भारत और भारत की ज़मीं
प्यार की बारिश से हो जाएंगे सब ठंढे दिमाग़
आग नफ़रत की न भड़केगी न भड़केगी कभी
17
पिन खोली और मुँह में दबाई
हाथ उठाए सँवारे बाल
खेल हवा ने खेला था जब
बिखर गए थे सारे बाल
18
रामायन, गीता और बायबल
गुरु ग्रन्थ यहाँ कुर-आन यहाँ
क्यों आग लगी चारों जानिब
हर्फे - नफ़रत लिक्खा है कहाँ
19
सवेरे के सूरज की पहली किरन तू
दिया है मुझे तू ने अपना उजाला
तेरे हुस्न पर शे'र कहता रहूँगा
तेरा हुस्न है हर हसीं से निराला
20
सीने पर जो हाथ रखा तो
जल गयी हर इक रेखा
हाथ दिखाया ज्योतिष को तो
ज्योतिष ने क्या देखा
21
शबनमी शब में चांदनी निखरी
ग़म के साये में हर ख़ुशी निखरी
मौत का शुक्रिया 'रक़ीब' के वो
याद आयी तो ज़िन्दगी निखरी
22
आपकी बात ही क्या, आप तो हैं हिन्दी दां
हाँ, मगर हमको है इस उर्दू जुबां से उल्फत
सर के ऊपर से निकल जाती है मुश्किल हिन्दी
और उर्दू से मुझे मिलती है बेहद लज़्ज़त
23
हो दिल मरज़ दूर भला कैसे के अब तो
मँहगाई को मुफ़लिस पे दया तक नहीं आती
मुश्किल से महीने में बचाता है वह जितना
उतने में तो खाँसी की दवा तक नहीं आती
24
ज़िन्दगी के दिन कटे आओ जवाँ रातें करें
बंदिशें अब ख़त्म सारी बेसदा बातें करें
जिस्म का रिश्ता था फ़ानी, रूह तो है जाविदां
जब, जहाँ, जी भर के चाहें हम मुलाक़ातें करें
25
दिल की गहराई से यारब हम तुम्हें करते हैं याद
हर घड़ी, हर लम्हा रखना फूल से बच्चे को शाद
जन्मदिन पर 'आप' को आशीष देता है 'रक़ीब'
नानियों, माता-पिता, मौसी व मामाओं के बाद
26
रंग, अबीर, गुलाल लगाकर फूलों की बौछार करें
फ़ागुन आया छोड़ के नफ़रत प्यार करें, बस प्यार करें
छोटों को दें, बड़ों से लेकर, आशीर्वाद आज के दिन
होगा बहुत मुनाफ़ा इस में आज यही व्योपार करें
27
आ जा तू किनारे पे न कर मुझको परेशान
तोड़ा है जो सिगनल तो करूँगा तेरा चालान
ग़लती से भी आइन्दा कभी ऐसा न करना
ट्रैफिक के सिपाही से बचेगी न तेरी जान
28
गुज़र गया है जो बचपन वो याद कर लेना
मिले जो वक़्त कभी हमको याद कर लेना
फ़लक के चाँद सितारे भी तुझको छूने हैं
मगर ज़मीन के ज़र्रों को याद कर लेना
29
वो कहाँ है, कहाँ है, कहाँ है मियाँ
हाले-दिल मेरा उस पर अयाँ है मियाँ
ढूँढती हैं निगाहेँ जिसे रात-दिन
कोई बतलाये मुझको जहां है मियाँ
30
ये सवाली जवाब क्या जाने
ख्वाहिशे-दिल गुलाब क्या जाने
शिद्दते-दीद चश्मे नम की 'रक़ीब'
"उसके रुख़ का नक़ाब क्या जाने"
31
चालाक भाभी - होली में मस्ती
भिगोलो दूर से मुझको, उड़ालो रंग जी भरकर
कहा भाभी ने देवर से, न छूना मेरे "वो" दिन हैं
32
"दिखाई देती हैं खुशियाँ तमाम आँखों में
हैं बेक़रार बहुत लब न जाने क्या कह दें"
33
"पलभर की हँसी से बनी तस्वीर बहुत खूब
बेहतर हो ये जीवन, जो हमेशा ही रहें खुश"
34
उजाला कम है, समझ में ये बात आती है
भरम है सबको अंधेरा नहीं "चराग़" तले
35
बेकार भटकती है कहाँ, सुन तू हवा ले चल
ऊपर से समुन्दर के मुझको तू उड़ा ले चल
प्यासी है बहुत धरती, हम प्यास बुझाएंगे
ज़िद छोड़ हवा मुझको बादल ने कहा ले चल
36
अब किसी भी बात का कोई बुरा माने नहीं
ऐ जहां वालो सुनो हम हो गए हैं साठ के
37
न खाई न झूठी क़सम खाएंगे हम
जुदा हो के तुझसे न रह पाएंगे हम
यक़ीं गर न हो देख लो आज़माकर
बिछड़ने से पहले ही मर जाएंगे हम
38
सज गया है फ़लक चाँद की दीद है
हो मुबारक तुम्हें, ईद है, ईद है
सब मोहब्बत करें, हो न बुग़ज़ो-हसद
इस मुबारक घड़ी की ये ताकीद है