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"अगर जाँ दोस्त ही ले ले तो दुश्मन की ज़रूरत क्या / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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अगर जाँ दोस्त ही ले ले तो दुश्मन की ज़रूरत क्या।
झुका रहना है मेरा सर तो गरदन की ज़रूरत क्या।
बता दो सिर्फ़ इतना जिंदगी के मायने हैं क्या,
अगर मुर्दा ही रहना है तो धड़कन की ज़रूरत क्या।
बहुत देखा हैं मैंने रूपवालों को यहाँ सजते,
अगर है आत्मा सुंदर तो दरपन की ज़रूरत क्या।
हक़ीक़त जाननी है तो कसैाटी पर कसो पहले,
अगर पीतल बने सोना तो कुन्दन की ज़रूरत क्या।
किसी झूठे प्रलोभन के कभी पीछे नहीं भागा,
अगर ये धूल काफी है तो चन्दन की ज़रूरत क्या।