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"वेा हमको अच्छा लगता है हम उस पर प्यार लुटाते हैं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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15:44, 18 जुलाई 2017 का अवतरण

वेा हमको अच्छा लगता है हम उस पर प्यार लुटाते हैं।
वेा रूठे या खुश रहे मगर हम अपना फ़र्ज़ निभाते है।

हर शख़्स को जिसमें अपना घर, अपना परिवार दिखाई दे,
जो ख़ुद में इक आईना हो हम ऐसी ग़ज़ल सुनाते हैं।

अब हम इतने मुफ़लिस भी नहीं कि अँधियारे में करें गुज़र,
जब माटी का दीया न मिले हम दिल की शम्आ जलाते हैं।

जो ज़्यादा क़ाबिल बनते हैं हम उनसे बचकर रहते हैं,
जब से बेटे सब बड़े हुए हम पोतों से बतियाते हैं।

क्या अब भी गाँव के बच्चों के बस्तों में खिलौने होते हैं,
क्या अब भी पहले के जैसे गाँवों में बिसाती आते हैं।

ये घर बिल्कुल मजबूत अभी गो कि ये बहुत पुराना है,
हम इसकी चौखट पर आकर बचपन की ख़ुशबू पाते हैं।