भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"थोड़ा-सा मुस्काने में क्यों इतनी देर लगा दी / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=रोशनी का कारव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

15:47, 18 जुलाई 2017 का अवतरण

थोड़ा-सा मुस्काने में क्यों इतनी देर लगा दी।
गुज़रे वक़्त भुलाने में क्यों इतनी देर लगा दी।

सारी ख़ता हमारी है तुम बेक़सूर हो बिल्कुल,
केवल यही बताने मे क्यों इतनी देर लगा दी।

कुछ हम झुकते, कुछ तुम दोनों गले से फिर लग जाते,
बिगड़ी बात बनाने में क्यों इतनी देर लगा दी।
       
तेरी इक आवाज़ पे मेरे क़दम वहीं रुक जाते,
वापस मुझे बुलाने में क्यों इतनी देर लगा दी।

ये सन्नाटे, ये अन्धेरे कैसे काटे होंगे,
दिल का दिया जलाने में क्यों इतनी देर लगा दी।