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"इन गलियों में चले चलो, बस कुछ मत सोचो / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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16:02, 18 जुलाई 2017 का अवतरण

इन गलियों में चले चलो, बस कुछ मत सोचो।
 प्यार करों तो प्यार करो, बस कुछ मत सोचो।

 यूँ पतझर का आना-जाना लगा रहे,
 हर मौसम में खिले रहो, बस कुछ मत सोचो।

 बार -बार तो मत कोसो अपनी क़िस्मत को,
 थेाडा-सा संतोष करेा, बस कुछ मत सोचो।
 
 कल भी तो बच्चों की ख़ातिर फ़ाके़ ही थे,
 आज भी भूखे पड़े रहो, बस कुछ मत सोचो।