भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इन गलियों में चले चलो, बस कुछ मत सोचो / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=रोशनी का कारव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:02, 18 जुलाई 2017 का अवतरण
इन गलियों में चले चलो, बस कुछ मत सोचो।
प्यार करों तो प्यार करो, बस कुछ मत सोचो।
यूँ पतझर का आना-जाना लगा रहे,
हर मौसम में खिले रहो, बस कुछ मत सोचो।
बार -बार तो मत कोसो अपनी क़िस्मत को,
थेाडा-सा संतोष करेा, बस कुछ मत सोचो।
कल भी तो बच्चों की ख़ातिर फ़ाके़ ही थे,
आज भी भूखे पड़े रहो, बस कुछ मत सोचो।