भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दुश्वारी / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) छो (corrected according to book - Tarqash) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर | |संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatNazm}} | |
<poem> | <poem> | ||
मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है | मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है |
18:05, 27 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है
मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ
कि तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो कोई ख़्वाब नहीं
यहाँ तो दिल का ये आलम है क्या कहूँ
कमबख़्त !
भुला न पाया ये वो सिलसिला जो था ही नहीं
वो इक ख़याल
जो आवाज़ तक गया ही नहीं
वो एक बात
जो मैं कह नहीं सका तुमसे
वो एक रब्त<ref>संबंध</ref>
जो हममें कभी रहा ही नहीं
मुझे है याद वो सब
जो कभी हुआ ही नहीं
शब्दार्थ
<references/>