भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चिंतन, दर्शन, जीवन, सर्जन / आलोक श्रीवास्तव-१" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार =  आलोक श्रीवास्तव-१
 +
}}
  
चिंतन,दर्शन,जीवन,सर्जन,रूह,नज़र पर छाई अम्मा
+
चिंतन,दर्शन,जीवन,सर्जन,रूह,नज़र पर छाई अम्मा<br>
सारे घर का शोर-शराबा,सूनापन,तनहाई अम्मा
+
सारे घर का शोर-शराबा,सूनापन,तनहाई अम्मा<br><br>
  
सारे रिश्ते- जेठ-दुपहरी,गर्म-हवा,आतिश,अंगारे
+
सारे रिश्ते- जेठ-दुपहरी,गर्म-हवा,आतिश,अंगारे<br>
झरना,दरिया,झील,समंदर,भीनी-सी पुरवाई अम्मा
+
झरना,दरिया,झील,समंदर,भीनी-सी पुरवाई अम्मा<br><br>
  
उसने ख़ुद को खोकर;मुझमें एक नया आकार लिया है
+
उसने ख़ुद को खोकर;मुझमें एक नया आकार लिया है<br>
धरती,अंबर,आग,हवा,जल जैसी ही सच्चाई अम्मा
+
धरती,अंबर,आग,हवा,जल जैसी ही सच्चाई अम्मा<br><br>
  
बाबूजी गुज़रे आपस में सब चीज़ें तक़्सीम हुईं,तब-
+
बाबूजी गुज़रे आपस में सब चीज़ें तक़्सीम हुईं,तब-<br>
मैं घर में सबसे छोटा था,मेरे हिस्से आई अम्मा
+
मैं घर में सबसे छोटा था,मेरे हिस्से आई अम्मा<br><br>
  
घर में झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़ते देखे
+
घर में झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़ते देखे<br>
 
चुपके-चुपके कर देती है,जाने कब तुरपाई अम्मा
 
चुपके-चुपके कर देती है,जाने कब तुरपाई अम्मा

19:44, 16 जून 2008 का अवतरण

चिंतन,दर्शन,जीवन,सर्जन,रूह,नज़र पर छाई अम्मा
सारे घर का शोर-शराबा,सूनापन,तनहाई अम्मा

सारे रिश्ते- जेठ-दुपहरी,गर्म-हवा,आतिश,अंगारे
झरना,दरिया,झील,समंदर,भीनी-सी पुरवाई अम्मा

उसने ख़ुद को खोकर;मुझमें एक नया आकार लिया है
धरती,अंबर,आग,हवा,जल जैसी ही सच्चाई अम्मा

बाबूजी गुज़रे आपस में सब चीज़ें तक़्सीम हुईं,तब-
मैं घर में सबसे छोटा था,मेरे हिस्से आई अम्मा

घर में झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़ते देखे
चुपके-चुपके कर देती है,जाने कब तुरपाई अम्मा