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"चिंतन, दर्शन, जीवन, सर्जन / आलोक श्रीवास्तव-१" के अवतरणों में अंतर

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19:45, 16 जून 2008 का अवतरण

चिंतन,दर्शन,जीवन,सर्जन,रूह,नज़र पर छाई अम्मा
सारे घर का शोर-शराबा,सूनापन,तनहाई अम्मा

सारे रिश्ते- जेठ-दुपहरी,गर्म-हवा,आतिश,अंगारे
झरना,दरिया,झील,समंदर,भीनी-सी पुरवाई अम्मा

उसने ख़ुद को खोकर;मुझमें एक नया आकार लिया है
धरती,अंबर,आग,हवा,जल जैसी ही सच्चाई अम्मा

बाबूजी गुज़रे आपस में सब चीज़ें तक़्सीम हुईं,तब-
मैं घर में सबसे छोटा था,मेरे हिस्से आई अम्मा

घर में झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़ते देखे
चुपके-चुपके कर देती है,जाने कब तुरपाई अम्मा