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"आपने ठोकरें खाकर कभी नहीं देखा / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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किसी दरख़्त ने चलकर कभी नहीं देखा।
 
किसी दरख़्त ने चलकर कभी नहीं देखा।
  
वो है सूरज उसे तपने तजु़र्बा केवल,
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वो है सूरज उसे तपने का तजु़र्बा केवल,
 
ज़मीं की आग में जलकर कभी नहीं देखा।
 
ज़मीं की आग में जलकर कभी नहीं देखा।
  
पेट भरने के सिवा ज़िंदगी के माने,
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पेट भरने के सिवा ज़िंदगी के क्या माने,
 
किसी ग़रीब ने जीकर कभी नहीं देखा।
 
किसी ग़रीब ने जीकर कभी नहीं देखा।
  
 
नेकियाँ करके भुला दें यही अच्छा होगा,
 
नेकियाँ करके भुला दें यही अच्छा होगा,
 
किसी नदी ने पलटकर कभी नहीं देखा।
 
किसी नदी ने पलटकर कभी नहीं देखा।
 
फूल क्या अब एक भी पत्ता नहीं है डाल पर,
 
पेड़ है फिर भी खड़ा मधुमास के अरमान में।
 
 
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11:26, 5 अगस्त 2017 का अवतरण

आपने ठोकरें खाकर कभी नहीं देखा।
किसी दरख़्त ने चलकर कभी नहीं देखा।

वो है सूरज उसे तपने का तजु़र्बा केवल,
ज़मीं की आग में जलकर कभी नहीं देखा।

पेट भरने के सिवा ज़िंदगी के क्या माने,
किसी ग़रीब ने जीकर कभी नहीं देखा।

नेकियाँ करके भुला दें यही अच्छा होगा,
किसी नदी ने पलटकर कभी नहीं देखा।