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"ख़ुदाया तू बता / जाबिर हुसेन" के अवतरणों में अंतर
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10:46, 16 जून 2008 के समय का अवतरण
ख़ुदाया तू बता
इन बस्तियों में
कौन, कैसे लोग बसते हैं
कि मुझ से
मौसमों के रंग
फूलों की ज़बां
लिखने को कहते हैं
कि मुझ से
नद्दियों की आग
बर्फ़ीली फ़िज़ा
लिखने को कहते हैं
ख़ुदाया तू बता
इन बस्तियों में
कौन, कैसे लोग बसते हैं
कि मुझ से
पेड़-पौधों की
परिंदों की
क़बा
लिखने को कहते हैं
ख़ुदा तू ही बता
अगर मैं
मौसमों के रंग
फूलों की ज़बां
और नद्दियों की आग
बर्फ़ीली फ़िज़ा और
पेड़-पौधों की, परिंदों की
क़बा
लिक्खूँ तो क्या लिक्खूँ
सुलगते शहर की
आब-व-हवा
लिक्खूँ तो क्या लिक्खूँ