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"रग-रग में कंटक-सी चुभती श्वास लिए भटकूँ / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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11:58, 5 अगस्त 2017 का अवतरण

रग-रग में कंटक-सी चुभती श्वास लिए भटकूँ।
अपने काँधे पर मैं अपनी लाश लिए भटकूँ।

लोगों की हमदर्दी का मॅुहताज़ हो गया हूँ,
सूनी-सूनी आँखों में आकाश लिए भटकूँ।

जश्न मनाओ तुम अपना मैं दर्द सहूँ अपना,
सारे रिश्तों-नातों से अवकाश लिए भटकूँ।

मैंने मांगा इक छोटा–सा मीठा–सा झरना,
ऐसा खारा मिला समन्दर प्यास लिए भटकूँ।