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"जिंदगी उसकी ज़माना भी उसी का होता / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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14:48, 5 अगस्त 2017 का अवतरण

जिंदगी उसकी ज़माना भी उसी का होता।
जिसकी आँखों में कोई ख़्वाब सुहाना होता।

मंजिलें उसकी, रास्ते भी उसी के होते,
अपने पाँवों पे जिसे पूरा भरोसा होता।

किसी इन्सान को पहचानना आसां है कहाँ,
एक चेहरे पे चढ़ा और भी चेहरा होता।

अब किसे ग़ैर कहें सब तो यहाँ अपने हैं,
जख़्म देकर जो गया क़ाश दूसरा होता।