भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दर्द से मुक्ति कभी तू ज़रूर पायेगा / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=उजाले का सफर /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:57, 5 अगस्त 2017 का अवतरण
दर्द से मुक्ति कभी तू ज़रूर पायेगा।
वक़्त के साथ सफ़र भी तेरा कट जायेगा।
हौंसलों पर चले है जिंदगी पाँवों पे नहीं,
पग बढ़े या न बढ़े, पर मुकाम आयेगा।
न तो पाँवों को तू ठोकर से बचा पाया है,
न तो दामन को तू दागों से बचा पायेगा।
चलो अच्छा हुआ जो ख़्वाब कई टूट गये,
अब न पलकों पे तू भारी वज़न उठायेगा।
कहीं शिकवे, कहीं मलाल, कहीं हैं फ़िकरे,
मुफ़त में सिर्फ़ यही तीन चीज़ पायेगा।