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"मन की सुगंध सारी आकाश ले गया / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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15:14, 5 अगस्त 2017 का अवतरण

मन की सुगंध सारी आकाश ले गया।
पत्तों की प्रेमगाथा मधुमास ले गया।

क्या आँसुओं के मोती कम पड़ गये उसे,
जो फिर हमें खुशी के वो पास ले गया।

मन के विराट जंगल में भी मजे में थे,
मुझको वो साथ क्यों फिर वनवास ले गया।

गलियों में मेरे चर्चे होने लगे हैं अक्सर,
इतिहास को हमारे परिहास ले गया।

कितनी बयार सहकर वह पेड़ है खड़ा,
मौसम तमाम जिसके एहसास ले गया।