भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आस्था / अनवर ईरज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनवर ईरज }} तुम्हारी आस्था की बुनियाद बहुत कमज़ोर है ...)
 
छो (हिज्जे)
पंक्ति 30: पंक्ति 30:
 
तुमने अपनी आस्था
 
तुमने अपनी आस्था
  
एक गन्दी सियासत से
+
एक गंदी सियासत से
  
 
जोड़ रखी है
 
जोड़ रखी है

09:29, 29 जून 2008 का अवतरण

तुम्हारी

आस्था की बुनियाद

बहुत कमज़ोर है

क्योंकि

तुमने उसकी बुनियाद

उस भूमि पर रखी ही नहीं

जो सचमुच राम की भूमि थी

तुमने

अपने कर्तव्य और आस्था की पाकीज़गी

राम से नहीं जोड़ी

राम से जोड़ते

तो दुनिया एहतराम करती

तुमने अपनी आस्था

एक गंदी सियासत से

जोड़ रखी है

और राम को

अपनी कुर्सी के पाए से

बांध रखा है

तुमने

राम और राम भक्तों को

एक साथ

छला है