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"कइसे करौं बखान ओ / प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'" के अवतरणों में अंतर

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मोर छत्तीसगढ़ महतारी,
तोर ममता हे महान ओ।
कम पड़ जाही कतको कहूं त,
कइसे करौं बखान ओ।

तोर कोरा म आके मन,
सुध-बुध गवां जाथे।
जइसे कोरा म लईका,
दाई के समा जाथे।

खेल-कूद के माटी म तोर,
हो गेंव मय जवान ओ।

नींदिया नइ आये मोला,
तोर अंचरा के छईया बिन।
रतिहा बैरी पहावे नहीं,
गुनत-गुनत कटथे दिन।

तोर मया बर मोर महतारी।
हस के दे दौ जान ओ।