भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खेत-खार हवे सुख्खा भांठा / प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद सोनवानी 'पुष्प' |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:10, 20 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

करिया बदरा आकाध म संगी,
आपन मन के आथे।
भुईंयाँ हमर उजर गीस काय,
ओखर बर भाग जाथे।

बड़ दिन ले ऐ खेल देख के,
मोर मन हर डराथे।
खेत-खार हवे सुख्खा भांठा,
मोला रोना आथे।