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"आपने ठोकरें खाकर कभी नहीं देखा / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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वो है सूरज उसे तपने का तजु़र्बा केवल,
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पेट भरने के सिवा ज़िंदगी के क्या माने,
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किसी ग़रीब ने जीकर कभी नहीं देखा।
 
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नेकियाँ करके भुला दें यही अच्छा होगा,
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किसी नदी ने पलटकर कभी नहीं देखा।
 
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16:14, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

आपने ठोकरें खाकर कभी नहीं देखा
किसी दरख़्त ने चलकर कभी नहीं देखा।

वो है सूरज उसे तपने का तजु़र्बा केवल
ज़मीं की आग में जलकर कभी नहीं देखा।

पेट भरने के सिवा ज़िंदगी के क्या माने
किसी ग़रीब ने जीकर कभी नहीं देखा।

नेकियाँ करके भुला दें यही अच्छा होगा
किसी नदी ने पलटकर कभी नहीं देखा।