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"ख़्वाब सब के महल बँगले हो गये / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | ख़्वाब सब के महल बँगले हो | + | ख़्वाब सब के महल बँगले हो गये |
ज़िंदगी के बिंब धुँघले हो गये। | ज़िंदगी के बिंब धुँघले हो गये। | ||
− | दृष्टि सोने और चाँदी की जहाँ | + | दृष्टि सोने और चाँदी की जहाँ |
भावना के मोल पहले हो गये। | भावना के मोल पहले हो गये। | ||
− | उस जगह से मिट गयीं अनुभूतियाँ | + | उस जगह से मिट गयीं अनुभूतियाँ |
जिस जगह के चाम उजले हो गये। | जिस जगह के चाम उजले हो गये। | ||
− | बादलों को जो चले थे सोखने | + | बादलों को जो चले थे सोखने |
पोखरों की भाँति छिछले हो गये। | पोखरों की भाँति छिछले हो गये। | ||
− | कौन पहचानेगा मुझको गाँव में | + | कौन पहचानेगा मुझको गाँव में |
इक ज़माना घर से निकले हो गये। | इक ज़माना घर से निकले हो गये। | ||
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16:16, 23 अगस्त 2017 का अवतरण
ख़्वाब सब के महल बँगले हो गये
ज़िंदगी के बिंब धुँघले हो गये।
दृष्टि सोने और चाँदी की जहाँ
भावना के मोल पहले हो गये।
उस जगह से मिट गयीं अनुभूतियाँ
जिस जगह के चाम उजले हो गये।
बादलों को जो चले थे सोखने
पोखरों की भाँति छिछले हो गये।
कौन पहचानेगा मुझको गाँव में
इक ज़माना घर से निकले हो गये।