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"कश्ती में आ के तूफाँ साहिल तलाशता है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | कश्ती में आ के तूफाँ साहिल तलाशता | + | कश्ती में आ के तूफाँ साहिल तलाशता है |
दुनिया को देने वाला, दुनिया से माँगता है। | दुनिया को देने वाला, दुनिया से माँगता है। | ||
− | चलने में ही मज़ा है चलता ही जा रहा हूँ | + | चलने में ही मज़ा है चलता ही जा रहा हूँ |
मंजिल के आगे मंजिल, मंजिल का क्या पता हैं। | मंजिल के आगे मंजिल, मंजिल का क्या पता हैं। | ||
− | इक रोज़ मान लोगे तुम ख़ुद-ब-खुद हकीकत | + | इक रोज़ मान लोगे तुम ख़ुद-ब-खुद हकीकत |
सबसे बड़ा वो इन्साँ जो प्यार बाँटता है। | सबसे बड़ा वो इन्साँ जो प्यार बाँटता है। | ||
− | सब कुछ दिया उसी का, दौलत भी सब उसी की | + | सब कुछ दिया उसी का, दौलत भी सब उसी की |
वो है ख़ुदा तो फिर क्या वो मुझसे चाहता है। | वो है ख़ुदा तो फिर क्या वो मुझसे चाहता है। | ||
− | नादां समझ रहा है लोगों को ज्योतिषी वो | + | नादां समझ रहा है लोगों को ज्योतिषी वो |
हाथों की लकीरों में किस्मत को बाँचता हैं। | हाथों की लकीरों में किस्मत को बाँचता हैं। | ||
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16:17, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
कश्ती में आ के तूफाँ साहिल तलाशता है
दुनिया को देने वाला, दुनिया से माँगता है।
चलने में ही मज़ा है चलता ही जा रहा हूँ
मंजिल के आगे मंजिल, मंजिल का क्या पता हैं।
इक रोज़ मान लोगे तुम ख़ुद-ब-खुद हकीकत
सबसे बड़ा वो इन्साँ जो प्यार बाँटता है।
सब कुछ दिया उसी का, दौलत भी सब उसी की
वो है ख़ुदा तो फिर क्या वो मुझसे चाहता है।
नादां समझ रहा है लोगों को ज्योतिषी वो
हाथों की लकीरों में किस्मत को बाँचता हैं।