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"कभी कल्पना के पंखों पर भी उड़ लिया करो / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | कभी कल्पना के पंखों पर भी उड़ लिया | + | कभी कल्पना के पंखों पर भी उड़ लिया करो |
कविता को कुछ और समीप हृदय के किया करो। | कविता को कुछ और समीप हृदय के किया करो। | ||
− | यह संसार बड़ा विस्तृत है पा न सकोगे सब | + | यह संसार बड़ा विस्तृत है पा न सकोगे सब |
कुछ पाओ, कुछ जीवन के अनुभव में जिया करो। | कुछ पाओ, कुछ जीवन के अनुभव में जिया करो। | ||
− | पीने में अधरों की अपनी सीमाएँ होतीं | + | पीने में अधरों की अपनी सीमाएँ होतीं |
नक्षत्रों की प्यास जगे तो दृग से पिया करो। | नक्षत्रों की प्यास जगे तो दृग से पिया करो। | ||
− | एहसासों के दरवाजों के खुलने की देरी | + | एहसासों के दरवाजों के खुलने की देरी |
जैसी चाहो छवि प्राणों में बैठा लिया करो। | जैसी चाहो छवि प्राणों में बैठा लिया करो। | ||
− | जिन आकृतियों के तन-मन पर धूल जम गयी हो | + | जिन आकृतियों के तन-मन पर धूल जम गयी हो |
भावों के सागर में उनको नहला दिया करो। | भावों के सागर में उनको नहला दिया करो। | ||
− | अपने जीवन के कोलाहल से थक जाओ तो | + | अपने जीवन के कोलाहल से थक जाओ तो |
दुनिया की इस हलचल से मन बहला लिया करो। | दुनिया की इस हलचल से मन बहला लिया करो। | ||
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16:19, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
कभी कल्पना के पंखों पर भी उड़ लिया करो
कविता को कुछ और समीप हृदय के किया करो।
यह संसार बड़ा विस्तृत है पा न सकोगे सब
कुछ पाओ, कुछ जीवन के अनुभव में जिया करो।
पीने में अधरों की अपनी सीमाएँ होतीं
नक्षत्रों की प्यास जगे तो दृग से पिया करो।
एहसासों के दरवाजों के खुलने की देरी
जैसी चाहो छवि प्राणों में बैठा लिया करो।
जिन आकृतियों के तन-मन पर धूल जम गयी हो
भावों के सागर में उनको नहला दिया करो।
अपने जीवन के कोलाहल से थक जाओ तो
दुनिया की इस हलचल से मन बहला लिया करो।