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"रग-रग में कंटक-सी चुभती श्वास लिए भटकूँ / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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अपने काँधे पर मैं अपनी लाश लिए भटकूँ। | अपने काँधे पर मैं अपनी लाश लिए भटकूँ। | ||
− | लोगों की हमदर्दी का मॅुहताज़ हो गया हूँ | + | लोगों की हमदर्दी का मॅुहताज़ हो गया हूँ |
सूनी-सूनी आँखों में आकाश लिए भटकूँ। | सूनी-सूनी आँखों में आकाश लिए भटकूँ। | ||
16:25, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
रग-रग में कंटक-सी चुभती श्वास लिए भटकूँ
अपने काँधे पर मैं अपनी लाश लिए भटकूँ।
लोगों की हमदर्दी का मॅुहताज़ हो गया हूँ
सूनी-सूनी आँखों में आकाश लिए भटकूँ।
जश्न मनाओ तुम अपना मैं दर्द सहूँ अपना
सारे रिश्तों-नातों से अवकाश लिए भटकूँ।
मैंने मांगा इक छोटा–सा मीठा–सा झरना
ऐसा खारा मिला समन्दर प्यास लिए भटकूँ।