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"अब कहाँ जायें हमारे रास्ते हैं बन्द / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | अब कहाँ जायें हमारे रास्ते हैं | + | अब कहाँ जायें हमारे रास्ते हैं बन्द |
ये हवायें लें गयीं सारा उड़ा मकरन्द। | ये हवायें लें गयीं सारा उड़ा मकरन्द। | ||
− | फूल के हम पास जायें, दूर से खुशबू भी लें | + | फूल के हम पास जायें, दूर से खुशबू भी लें |
पर, इज़ाज़त है कहाँ हो जाँय हम स्वच्छन्द। | पर, इज़ाज़त है कहाँ हो जाँय हम स्वच्छन्द। | ||
− | छोड़ना ही था तुझे तो क्यों किया फिर प्याचर | + | छोड़ना ही था तुझे तो क्यों किया फिर प्याचर |
जिंदगी में शेष है अब सिर्फ अन्तर्द्वन्द। | जिंदगी में शेष है अब सिर्फ अन्तर्द्वन्द। | ||
− | रोशनी को प्राण से देते अधिक हैं मान | + | रोशनी को प्राण से देते अधिक हैं मान |
वे शलभ जो ढूँढते हैं आग में आनन्द। | वे शलभ जो ढूँढते हैं आग में आनन्द। | ||
− | अब दिये की ज्योति भी होने लगी है क्षीण | + | अब दिये की ज्योति भी होने लगी है क्षीण |
अब दिये का ताप भी पड़ने लगा है मन्द। | अब दिये का ताप भी पड़ने लगा है मन्द। | ||
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16:26, 23 अगस्त 2017 का अवतरण
अब कहाँ जायें हमारे रास्ते हैं बन्द
ये हवायें लें गयीं सारा उड़ा मकरन्द।
फूल के हम पास जायें, दूर से खुशबू भी लें
पर, इज़ाज़त है कहाँ हो जाँय हम स्वच्छन्द।
छोड़ना ही था तुझे तो क्यों किया फिर प्याचर
जिंदगी में शेष है अब सिर्फ अन्तर्द्वन्द।
रोशनी को प्राण से देते अधिक हैं मान
वे शलभ जो ढूँढते हैं आग में आनन्द।
अब दिये की ज्योति भी होने लगी है क्षीण
अब दिये का ताप भी पड़ने लगा है मन्द।