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"मन की सुगंध सारी आकाश ले गया / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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मन की सुगंध सारी आकाश ले गया।
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मन की सुगंध सारी आकाश ले गया
 
पत्तों की प्रेमगाथा मधुमास ले गया।
 
पत्तों की प्रेमगाथा मधुमास ले गया।
  
क्या आँसुओं के मोती कम पड़ गये उसे,
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क्या आँसुओं के मोती कम पड़ गये उसे
 
जो फिर हमें खुशी के वो पास ले गया।
 
जो फिर हमें खुशी के वो पास ले गया।
  
मन के विराट जंगल में भी मजे में थे,
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मन के विराट जंगल में भी मजे में थे
 
मुझको वो साथ क्यों फिर वनवास ले गया।
 
मुझको वो साथ क्यों फिर वनवास ले गया।
  
गलियों में मेरे चर्चे होने लगे हैं अक्सर,
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गलियों में मेरे चर्चे होने लगे हैं अक्सर
 
इतिहास को हमारे परिहास ले गया।
 
इतिहास को हमारे परिहास ले गया।
  
कितनी बयार सहकर वह पेड़ है खड़ा,
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कितनी बयार सहकर वह पेड़ है खड़ा
 
मौसम तमाम जिसके एहसास ले गया।
 
मौसम तमाम जिसके एहसास ले गया।
 
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16:29, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

मन की सुगंध सारी आकाश ले गया
पत्तों की प्रेमगाथा मधुमास ले गया।

क्या आँसुओं के मोती कम पड़ गये उसे
जो फिर हमें खुशी के वो पास ले गया।

मन के विराट जंगल में भी मजे में थे
मुझको वो साथ क्यों फिर वनवास ले गया।

गलियों में मेरे चर्चे होने लगे हैं अक्सर
इतिहास को हमारे परिहास ले गया।

कितनी बयार सहकर वह पेड़ है खड़ा
मौसम तमाम जिसके एहसास ले गया।