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"तुम खुश रहो, हम खुश रहें अपनी जगह-अपनी जगह / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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तुम भी जियो, हम भी जियें अपनी जगह-अपनी जगह। | तुम भी जियो, हम भी जियें अपनी जगह-अपनी जगह। | ||
− | यह नीर सच, वह पीर सच, यह रात सच, वह प्रात सच | + | यह नीर सच, वह पीर सच, यह रात सच, वह प्रात सच |
मन को रखें, तन को रखें अपनी जगह-अपनी जगह। | मन को रखें, तन को रखें अपनी जगह-अपनी जगह। | ||
− | तुम भी सही, हम भी सही, जो है नियम वह भी सही | + | तुम भी सही, हम भी सही, जो है नियम वह भी सही |
तुम भी सहो, हम भी सहें अपनी जगह-अपनी जगह। | तुम भी सहो, हम भी सहें अपनी जगह-अपनी जगह। | ||
− | मजबूर तुम, मजबूर हम, मजबूरियों से क्या गिला | + | मजबूर तुम, मजबूर हम, मजबूरियों से क्या गिला |
शबनम गिरे, शोले बुझें अपनी जगह-अपनी जगह। | शबनम गिरे, शोले बुझें अपनी जगह-अपनी जगह। | ||
− | इस बर्फ़ में, उस आग में कुछ बात है जो एक है | + | इस बर्फ़ में, उस आग में कुछ बात है जो एक है |
जब तक जियें उगलें धुयें अपनी जगह-अपनी जगह। | जब तक जियें उगलें धुयें अपनी जगह-अपनी जगह। | ||
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16:30, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
तुम खुश रहो, हम खुश रहें अपनी जगह-अपनी जगह
तुम भी जियो, हम भी जियें अपनी जगह-अपनी जगह।
यह नीर सच, वह पीर सच, यह रात सच, वह प्रात सच
मन को रखें, तन को रखें अपनी जगह-अपनी जगह।
तुम भी सही, हम भी सही, जो है नियम वह भी सही
तुम भी सहो, हम भी सहें अपनी जगह-अपनी जगह।
मजबूर तुम, मजबूर हम, मजबूरियों से क्या गिला
शबनम गिरे, शोले बुझें अपनी जगह-अपनी जगह।
इस बर्फ़ में, उस आग में कुछ बात है जो एक है
जब तक जियें उगलें धुयें अपनी जगह-अपनी जगह।