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"सुनता नही फ़रियाद कोई हुक्मरान तक / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | सुनता नही फ़रियाद कोई हुक्मरान | + | सुनता नही फ़रियाद कोई हुक्मरान तक |
शामिल है इस गुनाह में आलाकमान तक। | शामिल है इस गुनाह में आलाकमान तक। | ||
− | मिलती नही ग़रीब को इमदाद कहीं से | + | मिलती नही ग़रीब को इमदाद कहीं से |
इस मामले में चुप है मेरा संविधान तक। | इस मामले में चुप है मेरा संविधान तक। | ||
− | फूटे हुए बरतन नहीं लोगों के घरों में | + | फूटे हुए बरतन नहीं लोगों के घरों में |
उसके यहाँ चाँदी के मगर पीकदान तक। | उसके यहाँ चाँदी के मगर पीकदान तक। | ||
− | उससे निजात पाने का रस्ता बताइये | + | उससे निजात पाने का रस्ता बताइये |
जो बो रहा है विष जमी से आसमान तक। | जो बो रहा है विष जमी से आसमान तक। | ||
− | ये और बात है कि कोई बोलता नही | + | ये और बात है कि कोई बोलता नही |
पर, शान्त भी नहीं है कोई बेजु़बान तक। | पर, शान्त भी नहीं है कोई बेजु़बान तक। | ||
17:11, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
सुनता नही फ़रियाद कोई हुक्मरान तक
शामिल है इस गुनाह में आलाकमान तक।
मिलती नही ग़रीब को इमदाद कहीं से
इस मामले में चुप है मेरा संविधान तक।
फूटे हुए बरतन नहीं लोगों के घरों में
उसके यहाँ चाँदी के मगर पीकदान तक।
उससे निजात पाने का रस्ता बताइये
जो बो रहा है विष जमी से आसमान तक।
ये और बात है कि कोई बोलता नही
पर, शान्त भी नहीं है कोई बेजु़बान तक।
जनता जो चाह ले तो असंभव नहीं है कुछ
इन पापियों का खत्म हो नामोनिशान तक।