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"तू जाने या जाने तेरी क़िस्मत मेरे यार / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | तू जाने या जाने तेरी क़िस्मत मेरे | + | तू जाने या जाने तेरी क़िस्मत मेरे यार |
पकड़ गया तो चोर बनेगा, बचेगा थानेदार। | पकड़ गया तो चोर बनेगा, बचेगा थानेदार। | ||
− | लोग भेड़िया कहते उसको, यही है उसकी जात | + | लोग भेड़िया कहते उसको, यही है उसकी जात |
दिखने में जो चुप्पा हो पीछे हो पर, खूँखार। | दिखने में जो चुप्पा हो पीछे हो पर, खूँखार। | ||
− | देश कहाँ जा रहा सवाल ये मुझसे पूछोगे | + | देश कहाँ जा रहा सवाल ये मुझसे पूछोगे |
कल का वो स्मगलर अब सीमा पर पहरेदार। | कल का वो स्मगलर अब सीमा पर पहरेदार। | ||
− | हर कुर्सी, हर दफ़्तर है संदेह के घेरे में | + | हर कुर्सी, हर दफ़्तर है संदेह के घेरे में |
बड़ा भयानक छुआछूत का रोग है भ्रष्टाचार। | बड़ा भयानक छुआछूत का रोग है भ्रष्टाचार। | ||
− | दोनों ख़बरे एक साथ थीं अख़बारों में कल | + | दोनों ख़बरे एक साथ थीं अख़बारों में कल |
गोदामों में माल सड़ रहा, मँहगाई की मार। | गोदामों में माल सड़ रहा, मँहगाई की मार। | ||
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17:11, 23 अगस्त 2017 का अवतरण
तू जाने या जाने तेरी क़िस्मत मेरे यार
पकड़ गया तो चोर बनेगा, बचेगा थानेदार।
लोग भेड़िया कहते उसको, यही है उसकी जात
दिखने में जो चुप्पा हो पीछे हो पर, खूँखार।
देश कहाँ जा रहा सवाल ये मुझसे पूछोगे
कल का वो स्मगलर अब सीमा पर पहरेदार।
हर कुर्सी, हर दफ़्तर है संदेह के घेरे में
बड़ा भयानक छुआछूत का रोग है भ्रष्टाचार।
दोनों ख़बरे एक साथ थीं अख़बारों में कल
गोदामों में माल सड़ रहा, मँहगाई की मार।