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"लगा है मेला मगर सब यहाँ अकेले हैं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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लगा है मेला मगर सब यहाँ अकेले हैं।
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किधर से जायेंगे हर राह पर लुटेरे है।
 
किधर से जायेंगे हर राह पर लुटेरे है।
  
कहाँ जायेंगे आप भागकर मुकद्दर से,
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कहाँ जायेंगे आप भागकर मुकद्दर से
 
जहाँ भी जायेंगे वहाँ भी सिर्फ धोखें  है।
 
जहाँ भी जायेंगे वहाँ भी सिर्फ धोखें  है।
  
जिसे भी देखिये जनता का ख़़ून पीता है,
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कहीं मच्छर तो कहीं बाघ छिपे बैठे हैं।
 
कहीं मच्छर तो कहीं बाघ छिपे बैठे हैं।
  
हमीं नहीं ये बात आप भी समझते हैं,
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हमीं नहीं ये बात आप भी समझते हैं
 
वही समाज का दुश्मन उसी के चर्चे हैं।
 
वही समाज का दुश्मन उसी के चर्चे हैं।
  
कहीं उम्मीद की किरन नज़र नहीं आती,
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भले इन्सान भी नज़रें झुका के बैठे हैं।
 
भले इन्सान भी नज़रें झुका के बैठे हैं।
  
जिन्हें अन्याय की बातों में न्याय दिखता है,
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जिन्हें अन्याय की बातों में न्याय दिखता है
 
वही इन्साफ़ की कुर्सी पे जमे बैठे हैं।
 
वही इन्साफ़ की कुर्सी पे जमे बैठे हैं।
 
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17:12, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

लगा है मेला मगर सब यहाँ अकेले हैं
किधर से जायेंगे हर राह पर लुटेरे है।

कहाँ जायेंगे आप भागकर मुकद्दर से
जहाँ भी जायेंगे वहाँ भी सिर्फ धोखें है।

जिसे भी देखिये जनता का ख़़ून पीता है
कहीं मच्छर तो कहीं बाघ छिपे बैठे हैं।

हमीं नहीं ये बात आप भी समझते हैं
वही समाज का दुश्मन उसी के चर्चे हैं।

कहीं उम्मीद की किरन नज़र नहीं आती
भले इन्सान भी नज़रें झुका के बैठे हैं।

जिन्हें अन्याय की बातों में न्याय दिखता है
वही इन्साफ़ की कुर्सी पे जमे बैठे हैं।