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"वेा अच्छा आदमी था आ गया बातों में वो कैसे / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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शहर हैराँ है सारा आ गया झाँसों में वो कैसे। | शहर हैराँ है सारा आ गया झाँसों में वो कैसे। | ||
− | वो बच्चा तो नहीं था, नासमझ भी तो नहीं था फिर | + | वो बच्चा तो नहीं था, नासमझ भी तो नहीं था फिर |
बना सुर्खी जमाने भर के अखबारों में वो कैसे। | बना सुर्खी जमाने भर के अखबारों में वो कैसे। | ||
− | सियासत का परिन्दा वो बड़ा जाँबाज था लेकिन | + | सियासत का परिन्दा वो बड़ा जाँबाज था लेकिन |
फँसा रंगीनियों में इश्क के खेलों में वो कैसे। | फँसा रंगीनियों में इश्क के खेलों में वो कैसे। | ||
− | सुना है कल तलक कलियों पक डोरे डालता था वो | + | सुना है कल तलक कलियों पक डोरे डालता था वो |
मगर अब आ गया है ख़ुद बड़े फंदों में वो कैसे। | मगर अब आ गया है ख़ुद बड़े फंदों में वो कैसे। | ||
− | समय अब वो नहीं हैं, वो ज़माना भी नहीं उसका | + | समय अब वो नहीं हैं, वो ज़माना भी नहीं उसका |
वफ़ादारी चला है ढूँढने चमचों में वो कैसे। | वफ़ादारी चला है ढूँढने चमचों में वो कैसे। | ||
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17:14, 23 अगस्त 2017 का अवतरण
वेा अच्छा आदमी था आ गया बातों में वो कैसे
शहर हैराँ है सारा आ गया झाँसों में वो कैसे।
वो बच्चा तो नहीं था, नासमझ भी तो नहीं था फिर
बना सुर्खी जमाने भर के अखबारों में वो कैसे।
सियासत का परिन्दा वो बड़ा जाँबाज था लेकिन
फँसा रंगीनियों में इश्क के खेलों में वो कैसे।
सुना है कल तलक कलियों पक डोरे डालता था वो
मगर अब आ गया है ख़ुद बड़े फंदों में वो कैसे।
समय अब वो नहीं हैं, वो ज़माना भी नहीं उसका
वफ़ादारी चला है ढूँढने चमचों में वो कैसे।