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"भले जलसों में आकर के ज़बानें खूब चलती हैं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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भले जलसों में आकर के ज़बानें खूब चलती हैं।
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भले जलसों में आकर के ज़बानें खूब चलती हैं
 
मगर अन्दर  की मेरे खामियाँ दावे से रहती हैं।
 
मगर अन्दर  की मेरे खामियाँ दावे से रहती हैं।
  
तुम्हारी ओर तो मैं एक ही उँगली उठाता हूँ,
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तुम्हारी ओर तो मैं एक ही उँगली उठाता हूँ
 
मगर मेरी तरफ तब उँगलियाँ भी चार उठती हैं।
 
मगर मेरी तरफ तब उँगलियाँ भी चार उठती हैं।
  
अरे, वो मक्खियाँ हैं जो कहीं भी बैठ जाती है,
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अरे, वो मक्खियाँ हैं जो कहीं भी बैठ जाती है
 
मगर ये तितलियाँ  हैं जो गुलों के पास उड़ती है।  
 
मगर ये तितलियाँ  हैं जो गुलों के पास उड़ती है।  
  
भरे नालों को अपने आप पर धोखा हुआ लेकिन,
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भरे नालों को अपने आप पर धोखा हुआ लेकिन
 
ये नदियाँ हैं जो नालों से न घटती हैं, न बढ़ती हैं।
 
ये नदियाँ हैं जो नालों से न घटती हैं, न बढ़ती हैं।
  
चलो माना कि इन पत्तों की क़ीमत कुछ नहीं फिर भी,
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चलो माना कि इन पत्तों की क़ीमत कुछ नहीं फिर भी
 
बड़ी शाख़ें इन्हीं पत्तों के अन्दर छुप के रहती हैं।
 
बड़ी शाख़ें इन्हीं पत्तों के अन्दर छुप के रहती हैं।
 
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17:15, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

भले जलसों में आकर के ज़बानें खूब चलती हैं
मगर अन्दर की मेरे खामियाँ दावे से रहती हैं।

तुम्हारी ओर तो मैं एक ही उँगली उठाता हूँ
मगर मेरी तरफ तब उँगलियाँ भी चार उठती हैं।

अरे, वो मक्खियाँ हैं जो कहीं भी बैठ जाती है
मगर ये तितलियाँ हैं जो गुलों के पास उड़ती है।

भरे नालों को अपने आप पर धोखा हुआ लेकिन
ये नदियाँ हैं जो नालों से न घटती हैं, न बढ़ती हैं।

चलो माना कि इन पत्तों की क़ीमत कुछ नहीं फिर भी
बड़ी शाख़ें इन्हीं पत्तों के अन्दर छुप के रहती हैं।