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"देर से जाना उसे वो आदमी मक्कार है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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जुल्म का मंज़र जो देखा हमने भी ये तय किया,
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इस सभा में न्याय पर कोई बहस बेकार है।
 
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हाथ ढीले, पाँव ढीले हाल उसका देखिये,
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वो किसी को क्या मदद देगा जो ख़ुद लाचार है।
 
वो किसी को क्या मदद देगा जो ख़ुद लाचार है।
  
लोग कुछ घायल पड़े, कुछ हैं कतारों में खड़े,
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लोग कुछ घायल पड़े, कुछ हैं कतारों में खड़े
 
हर भला इन्सान इस माहौल में बीमार है।
 
हर भला इन्सान इस माहौल में बीमार है।
  

17:15, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

देर से जाना उसे वो आदमी मक्कार है
कौम के ही बीच में वो कौम का गद्दार है।

जुल्म का मंज़र जो देखा हमने भी ये तय किया
इस सभा में न्याय पर कोई बहस बेकार है।

हाथ ढीले, पाँव ढीले हाल उसका देखिये
वो किसी को क्या मदद देगा जो ख़ुद लाचार है।

लोग कुछ घायल पड़े, कुछ हैं कतारों में खड़े
हर भला इन्सान इस माहौल में बीमार है।

आप अपना कल अगर महफूज़ रखना चाहते
एक छोटी ही सही, पर क्रान्ति की दरकार है।