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"दुनिया में अपनी खुश मुझे रहना पसन्द है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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दुनिया में अपनी खुश मुझे रहना पसन्द है।
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दुनिया में अपनी खुश मुझे रहना पसन्द है
 
इस चक्रव्यूह में मुझे मरना पसन्द है।
 
इस चक्रव्यूह में मुझे मरना पसन्द है।
  
बाहर की फ़जायें बहुत ही ख़ुशनुमा मगर,
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बाहर की फ़जायें बहुत ही ख़ुशनुमा मगर
 
भीतर की आग में मुझे जलना पसन्द है।
 
भीतर की आग में मुझे जलना पसन्द है।
  
पत्थर बनूँ तो देवता यदि शर्त है यही,
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पत्थर बनूँ तो देवता यदि शर्त है यही
 
तो मोम बनके मुझको पिघलना पसन्द है।
 
तो मोम बनके मुझको पिघलना पसन्द है।
  
देखा है उस ग़रीब का चेहरा क़रीब से,
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देखा है उस ग़रीब का चेहरा क़रीब से
 
मैं क्या बताऊँ ग़म मुझे कितना पसन्द है।
 
मैं क्या बताऊँ ग़म मुझे कितना पसन्द है।
  
जन्नत का सफ़र भी मुझे तन्हा नहीं कबूल,
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जन्नत का सफ़र भी मुझे तन्हा नहीं कबूल
 
दुंनयाए  कारवाँ में ही  चलना पसन्द है।
 
दुंनयाए  कारवाँ में ही  चलना पसन्द है।
  
जो ज़ुल्म के खि़लाफ़ बोलना पसन्द है,
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जो ज़ुल्म के खि़लाफ़ बोलना पसन्द है
 
अपने गुनाह के लिए सुनना पसन्द है।
 
अपने गुनाह के लिए सुनना पसन्द है।
 
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17:16, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

दुनिया में अपनी खुश मुझे रहना पसन्द है
इस चक्रव्यूह में मुझे मरना पसन्द है।

बाहर की फ़जायें बहुत ही ख़ुशनुमा मगर
भीतर की आग में मुझे जलना पसन्द है।

पत्थर बनूँ तो देवता यदि शर्त है यही
तो मोम बनके मुझको पिघलना पसन्द है।

देखा है उस ग़रीब का चेहरा क़रीब से
मैं क्या बताऊँ ग़म मुझे कितना पसन्द है।

जन्नत का सफ़र भी मुझे तन्हा नहीं कबूल
दुंनयाए कारवाँ में ही चलना पसन्द है।

जो ज़ुल्म के खि़लाफ़ बोलना पसन्द है
अपने गुनाह के लिए सुनना पसन्द है।