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"सीपियों के नाम में सारा समंदर लिख गया / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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ग़म मेरा वो शायरी अपनी बनाकर लिख गया। | ग़म मेरा वो शायरी अपनी बनाकर लिख गया। | ||
− | उस मुसव्विर को ज़रूरत है कहाँ किस रंग की | + | उस मुसव्विर को ज़रूरत है कहाँ किस रंग की |
मौसमों के रंग जो पत्तों के ऊपर लिख गया। | मौसमों के रंग जो पत्तों के ऊपर लिख गया। | ||
− | मैंने क़िस्मत की ज़मीं पर हल चलाया रात -दिन | + | मैंने क़िस्मत की ज़मीं पर हल चलाया रात-दिन |
कुछ न जब पनपा तो वो मेरा मुक़द्दर लिख गया। | कुछ न जब पनपा तो वो मेरा मुक़द्दर लिख गया। | ||
− | वो अगर शायर नही तो फिर बताओं कौन है | + | वो अगर शायर नही तो फिर बताओं कौन है |
उम्र भर का दर्द जो पल भर में हँसकर लिख गया। | उम्र भर का दर्द जो पल भर में हँसकर लिख गया। | ||
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17:20, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
सीपियों के नाम में सारा समंदर लिख गया
ग़म मेरा वो शायरी अपनी बनाकर लिख गया।
उस मुसव्विर को ज़रूरत है कहाँ किस रंग की
मौसमों के रंग जो पत्तों के ऊपर लिख गया।
मैंने क़िस्मत की ज़मीं पर हल चलाया रात-दिन
कुछ न जब पनपा तो वो मेरा मुक़द्दर लिख गया।
वो अगर शायर नही तो फिर बताओं कौन है
उम्र भर का दर्द जो पल भर में हँसकर लिख गया।