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"आसमान वो भले नहीं, पर मेरे सर की छतरी है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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आसमान वो भले नहीं, पर मेरे सर की छतरी है।
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आसमान वो भले नहीं, पर मेरे सर की छतरी है
 
गोदाम नहीं है बेशक़ वो, पर मेरी माँ की अँजुरी है।
 
गोदाम नहीं है बेशक़ वो, पर मेरी माँ की अँजुरी है।
  
लायक नहीं है मेरा बेटा दुनिया कहती कहने दे,
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लायक नहीं है मेरा बेटा दुनिया कहती कहने दे
 
वो मेरी बूढ़ी आँखों की मगर चमकती पुतरी है।
 
वो मेरी बूढ़ी आँखों की मगर चमकती पुतरी है।
  
गाँव बदल देगा, पर कैसे गाँव की मिट्टी बदलेगा,
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गाँव बदल देगा, पर कैसे गाँव की मिट्टी बदलेगा
 
गाँव की बातें नहीं समझता लगता है वो शहरी है।
 
गाँव की बातें नहीं समझता लगता है वो शहरी है।
  
घर -घर  बिजली पहॅुच गयी है ये दावा भी झूठा है,
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घर -घर  बिजली पहॅुच गयी है ये दावा भी झूठा है
 
बहुत घरों में अब भी जलती वही टीन की ढिबरी है।
 
बहुत घरों में अब भी जलती वही टीन की ढिबरी है।
  
इन्सानों को सबसे ज्यादा ख़तरा इन्सानों से है,
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इन्सानों को सबसे ज्यादा ख़तरा इन्सानों से है
 
हँसकर खूब मिले तो समझो साजिश कोई गहरी है।
 
हँसकर खूब मिले तो समझो साजिश कोई गहरी है।
 
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17:22, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

आसमान वो भले नहीं, पर मेरे सर की छतरी है
गोदाम नहीं है बेशक़ वो, पर मेरी माँ की अँजुरी है।

लायक नहीं है मेरा बेटा दुनिया कहती कहने दे
वो मेरी बूढ़ी आँखों की मगर चमकती पुतरी है।

गाँव बदल देगा, पर कैसे गाँव की मिट्टी बदलेगा
गाँव की बातें नहीं समझता लगता है वो शहरी है।

घर -घर बिजली पहॅुच गयी है ये दावा भी झूठा है
बहुत घरों में अब भी जलती वही टीन की ढिबरी है।

इन्सानों को सबसे ज्यादा ख़तरा इन्सानों से है
हँसकर खूब मिले तो समझो साजिश कोई गहरी है।