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"अगर उदास है वो तो कोई मजबूरी है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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आज जी भर के चाँदनी को अपनी देखेंगे,
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हमारे पास अभी एक रात पूरी है।
 
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आप जाँये तो मुस्करा के यहाँ से जाँये,
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इस ग़ज़ल में ये शेर भी बहुत ज़रूरी है।
 
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आप दे लाख दलीलें, हजा़र तहरीरें,
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आप दे लाख दलीलें, हजा़र तहरीरें
 
सही है वो जिसे समाज की मंज़ूरी है।
 
सही है वो जिसे समाज की मंज़ूरी है।
  
हरेक बात का उत्तर वो हाँ में देता है,
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अजीब चीज़ ज़माने में जी-हुज़ूरी है।
 
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हमारे घर से आज शाम का धुआँ न उठा,
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तुम्हारे मयकदे की शाम तो अँगूरी है।
 
तुम्हारे मयकदे की शाम तो अँगूरी है।
 
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17:27, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

अगर उदास है वो तो कोई मजबूरी है
कोई वज़ह है अगर दो दिलों में दूरी है।

आज जी भर के चाँदनी को अपनी देखेंगे
हमारे पास अभी एक रात पूरी है।

आप जाँये तो मुस्करा के यहाँ से जाँये
इस ग़ज़ल में ये शेर भी बहुत ज़रूरी है।

आप दे लाख दलीलें, हजा़र तहरीरें
सही है वो जिसे समाज की मंज़ूरी है।

हरेक बात का उत्तर वो हाँ में देता है
अजीब चीज़ ज़माने में जी-हुज़ूरी है।

हमारे घर से आज शाम का धुआँ न उठा
तुम्हारे मयकदे की शाम तो अँगूरी है।