भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हम ख़ादिमे गुलशन जब ठहरे हमें फ़िक्रे गुलिस्ताँ क्या करना / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=रोशनी का कारव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
है ख़ुद ही मुनव्वर सारा चमन हमें फिक्रे  चिराँगा क्या करना।
 
है ख़ुद ही मुनव्वर सारा चमन हमें फिक्रे  चिराँगा क्या करना।
  
जब बच्चे हमारे छोटे थे मशवरा हमारा  सुनते  थे,
+
जब बच्चे हमारे छोटे थे मशवरा हमारा  सुनते  थे
 
अब उनसे उम्मीदें क्या करना, अब उनको परीशाँ क्या करना।
 
अब उनसे उम्मीदें क्या करना, अब उनको परीशाँ क्या करना।
  
हम क़ैद हैं धर के कोने में याँ साँस भी लेना मुश्किल  है,
+
हम क़ैद हैं धर के कोने में याँ साँस भी लेना मुश्किल  है
 
जो मौत से बदतर  जीवन  दे हमें  ऐसा निगहवाँ  क्या करना।
 
जो मौत से बदतर  जीवन  दे हमें  ऐसा निगहवाँ  क्या करना।
  
हम तो मदमस्त कबीरा हैं, हमें राह पे अपनी चलने दे,
+
हम तो मदमस्त कबीरा हैं, हमें राह पे अपनी चलने दे
 
जो प्रेम का  पाठ पढ़ा न सकें हमें  ऐसे  फ़की़हाँ क्या करना।
 
जो प्रेम का  पाठ पढ़ा न सकें हमें  ऐसे  फ़की़हाँ क्या करना।
 
</poem>
 
</poem>

17:27, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

हम ख़ादिमे गुलशन जब ठहरे हमें फ़िक्रे गुलिस्ताँ क्या करना
है ख़ुद ही मुनव्वर सारा चमन हमें फिक्रे चिराँगा क्या करना।

जब बच्चे हमारे छोटे थे मशवरा हमारा सुनते थे
अब उनसे उम्मीदें क्या करना, अब उनको परीशाँ क्या करना।

हम क़ैद हैं धर के कोने में याँ साँस भी लेना मुश्किल है
जो मौत से बदतर जीवन दे हमें ऐसा निगहवाँ क्या करना।

हम तो मदमस्त कबीरा हैं, हमें राह पे अपनी चलने दे
जो प्रेम का पाठ पढ़ा न सकें हमें ऐसे फ़की़हाँ क्या करना।