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"भावुकता के बिना शून्य जीवन लगता / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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भावुकता के बिना शून्य जीवन लगता।
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भावुकता के बिना शून्य जीवन लगता
 
भावुकता से लेकिन काम नहीं चलता।
 
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मेरे घर का दीप भरोसेमंद तो है,
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मेरे घर का दीप भरोसेमंद तो है
 
घना अँधेरा उस से किन्तु नहीं डरता।
 
घना अँधेरा उस से किन्तु नहीं डरता।
  
माँ से बढ़कर कोई और नहीं होता,
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माँ से बढ़कर कोई और नहीं होता
 
पर, सुंदर अतीत पर वक़्त नहीं रूकता।
 
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शाख़ टूट जाती है आँधी आने पर,
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पात हरा छोटा -सा, किन्तुू  नहीं गिरता।
 
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थाली आती है जब मेरे खाने की,
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थाली आती है जब मेरे खाने की
 
बेटा मँहगाई का जिक्र तभी करता।
 
बेटा मँहगाई का जिक्र तभी करता।
 
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17:28, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

भावुकता के बिना शून्य जीवन लगता
भावुकता से लेकिन काम नहीं चलता।

मेरे घर का दीप भरोसेमंद तो है
घना अँधेरा उस से किन्तु नहीं डरता।

माँ से बढ़कर कोई और नहीं होता
पर, सुंदर अतीत पर वक़्त नहीं रूकता।

शाख़ टूट जाती है आँधी आने पर
पात हरा छोटा -सा, किन्तुू नहीं गिरता।

थाली आती है जब मेरे खाने की
बेटा मँहगाई का जिक्र तभी करता।