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"वही गगन भी छूता है जिसका ज़मीन से नाता है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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मिट्टी का पुतला ही उड़कर चाँद पे ध्वज फहराता है। | मिट्टी का पुतला ही उड़कर चाँद पे ध्वज फहराता है। | ||
− | उसको भी देखा है जो अपनी ज़मीन से जुड़ा हुआ | + | उसको भी देखा है जो अपनी ज़मीन से जुड़ा हुआ |
उसको भी देखा है जो बनकर पतंग इतराता है। | उसको भी देखा है जो बनकर पतंग इतराता है। | ||
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नन्हा -सा वो दिया देखिये तूफाँ से लड़ जाता है। | नन्हा -सा वो दिया देखिये तूफाँ से लड़ जाता है। | ||
− | सहनशीलता सिखा सिखा कर किसने मार दिया उसको | + | सहनशीलता सिखा सिखा कर किसने मार दिया उसको |
एक शेर का बच्चा अब बिल्ली से क्यों मिमियाता है। | एक शेर का बच्चा अब बिल्ली से क्यों मिमियाता है। | ||
− | गुस्सा आया, प्यार भी आया, रूठे भी और मान गये | + | गुस्सा आया, प्यार भी आया, रूठे भी और मान गये |
तेरी इसी अदा पर मेरा दिल लट्टू हो जाता है। | तेरी इसी अदा पर मेरा दिल लट्टू हो जाता है। | ||
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17:29, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
वही गगन भी छूता है जिसका ज़मीन से नाता है
मिट्टी का पुतला ही उड़कर चाँद पे ध्वज फहराता है।
उसको भी देखा है जो अपनी ज़मीन से जुड़ा हुआ
उसको भी देखा है जो बनकर पतंग इतराता है।
बढी रोशनी है ज़रूर, पर उसमें है वो बात कहाँ,
नन्हा -सा वो दिया देखिये तूफाँ से लड़ जाता है।
सहनशीलता सिखा सिखा कर किसने मार दिया उसको
एक शेर का बच्चा अब बिल्ली से क्यों मिमियाता है।
गुस्सा आया, प्यार भी आया, रूठे भी और मान गये
तेरी इसी अदा पर मेरा दिल लट्टू हो जाता है।