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"हमें बेटा नहीं बनिये की पूँजी मानता है वो / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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हमें बेटा नहीं बनिये की पूँजी मानता है वो।
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हमें बेटा नहीं बनिये की पूँजी मानता है वो
 
हमारी हर तरक्की में मुनाफ़ा माँगता है वो।  
 
हमारी हर तरक्की में मुनाफ़ा माँगता है वो।  
  
पिता है वो, कोई  भगवान वो थेाड़े ही मेरा है,
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पिता है वो, कोई  भगवान वो थेाड़े ही मेरा है
 
मुझे अपने इशारों पर नचाना चाहता है वो।
 
मुझे अपने इशारों पर नचाना चाहता है वो।
  
कभी सोचा भी है उसने समझदारी से घर चलता,
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कभी सोचा भी है उसने समझदारी से घर चलता
 
मुझे आदेश के चाबुक से अपने हाँकता है वो।
 
मुझे आदेश के चाबुक से अपने हाँकता है वो।
  
हमें रिश्तों की परिभाषा बताने वो चला बेशक़,
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हमें रिश्तों की परिभाषा बताने वो चला बेशक़
 
मगर रिश्तों का क्यान मतलब है खुद भी जानता है वो।
 
मगर रिश्तों का क्यान मतलब है खुद भी जानता है वो।
  
बताते लोग हैं वो सन्तुलन भी खो चुका अपना,
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बताते लोग हैं वो सन्तुलन भी खो चुका अपना
 
कि इस घनघोर कलजुग में भी ‘सरवन’ ढूँढता है वो।
 
कि इस घनघोर कलजुग में भी ‘सरवन’ ढूँढता है वो।
  
अभी बच्चा है तो उसकी नज़र से देखिये उसको,
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अभी बच्चा है तो उसकी नज़र से देखिये उसको
 
क़िताबें दीजिए, लेकिन खिलौना चाहता है वो।
 
क़िताबें दीजिए, लेकिन खिलौना चाहता है वो।
 
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17:29, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

हमें बेटा नहीं बनिये की पूँजी मानता है वो
हमारी हर तरक्की में मुनाफ़ा माँगता है वो।

पिता है वो, कोई भगवान वो थेाड़े ही मेरा है
मुझे अपने इशारों पर नचाना चाहता है वो।

कभी सोचा भी है उसने समझदारी से घर चलता
मुझे आदेश के चाबुक से अपने हाँकता है वो।

हमें रिश्तों की परिभाषा बताने वो चला बेशक़
मगर रिश्तों का क्यान मतलब है खुद भी जानता है वो।

बताते लोग हैं वो सन्तुलन भी खो चुका अपना
कि इस घनघोर कलजुग में भी ‘सरवन’ ढूँढता है वो।

अभी बच्चा है तो उसकी नज़र से देखिये उसको
क़िताबें दीजिए, लेकिन खिलौना चाहता है वो।