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"फ़ज़ा वो भी समझता है, फ़ज़ा हम भी समझते हैं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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फ़ज़ा वो भी समझता है, फ़जा़ हम भी समझते हैं।
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फ़ज़ा वो भी समझता है, फ़जा़ हम भी समझते हैं
 
उधर भी फूल खिलते है, इधर भी फूल खिलते है।  
 
उधर भी फूल खिलते है, इधर भी फूल खिलते है।  
  
भले बेटों की खुशियों के लिए हम जान भी दे दें,
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भले बेटों की खुशियों के लिए हम जान भी दे दें
 
मगर बेटे कहें मेरे लिए क्या आप करते हैं।
 
मगर बेटे कहें मेरे लिए क्या आप करते हैं।
  
कभी विश्वास में डूबे, कभी धोखे ने मारा है,
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कभी विश्वास में डूबे, कभी धोखे ने मारा है
 
उसे सब हो गया हासिल मगर हम हाथ मलते हैं।
 
उसे सब हो गया हासिल मगर हम हाथ मलते हैं।
  
सुकूँ दर्दे जहाँ में भी जो ढूँढोगे तो पाओगे,
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सुकूँ दर्दे जहाँ में भी जो ढूँढोगे तो पाओगे
 
कि दरिया आग का भी लोग हँसकर पार करते हैं।
 
कि दरिया आग का भी लोग हँसकर पार करते हैं।
  
सुना है वायुयानों को कोई चालक उड़ाता है,
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सुना है वायुयानों को कोई चालक उड़ाता है
 
मगर हम तो हैं गुब्बारे जो क़िस्मत ले के उड़ते है।
 
मगर हम तो हैं गुब्बारे जो क़िस्मत ले के उड़ते है।
  
हमारे शहर में डी एम भी हैं, कप्तान साहब भी,
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हमारे शहर में डी एम भी हैं, कप्तान साहब भी
 
हुकू़मत हो किसी की चोर लेकिन राज करते हैं।
 
हुकू़मत हो किसी की चोर लेकिन राज करते हैं।
  
खुदा मेरे,मशक्कत की मुझे दो रोटियाँ देना,
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खुदा मेरे,मशक्कत की मुझे दो रोटियाँ देना
 
मिले  जन्नत भी तोहफ़े में तो हम इन्कार करते हैं।
 
मिले  जन्नत भी तोहफ़े में तो हम इन्कार करते हैं।
 
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17:29, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

फ़ज़ा वो भी समझता है, फ़जा़ हम भी समझते हैं
उधर भी फूल खिलते है, इधर भी फूल खिलते है।

भले बेटों की खुशियों के लिए हम जान भी दे दें
मगर बेटे कहें मेरे लिए क्या आप करते हैं।

कभी विश्वास में डूबे, कभी धोखे ने मारा है
उसे सब हो गया हासिल मगर हम हाथ मलते हैं।

सुकूँ दर्दे जहाँ में भी जो ढूँढोगे तो पाओगे
कि दरिया आग का भी लोग हँसकर पार करते हैं।

सुना है वायुयानों को कोई चालक उड़ाता है
मगर हम तो हैं गुब्बारे जो क़िस्मत ले के उड़ते है।

हमारे शहर में डी एम भी हैं, कप्तान साहब भी
हुकू़मत हो किसी की चोर लेकिन राज करते हैं।

खुदा मेरे,मशक्कत की मुझे दो रोटियाँ देना
मिले जन्नत भी तोहफ़े में तो हम इन्कार करते हैं।