भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"थक गए हैं ख्वाब / अर्चना कुमारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कुमारी |अनुवादक= |संग्रह=प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
{{KKCatMahilaRachnakaar}}
 
 
<poem>
 
<poem>
 
घड़ी की यात्रा  
 
घड़ी की यात्रा  

18:33, 26 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

घड़ी की यात्रा
एक वृताकार पथ मेरे कमरे का
दिन की पगडंडियां
रात के तलवे में उगा लाती हैं
कई रातों की पीर
बदलती करवटों संग
बदलता है मन का रंग।
शाम की देहरी पर
रख आती हूं रोज
आस का दीपक
नींदों के नाम।
जागते-जागते
थक गये हैं ख्वाब
पलंग गोल
वक्त चौकोर।
बस एक पल ऐसा
कि भूल जाऊं सब
कि सो जाऊं गहरी नींद
बाबा की असहजता
मां का अवसाद
भाई की प्रतिबद्धता।
बस एक वो रात
पलकों में चुभती चिन्दियाँ जब
मुक्त होकर बह उठें
और शोकगीतों की नदी
बहा ले जाए लफ्जों की कारीगरी।
कौन है वो
जिसकी पैरों की छाप
मिलती है मेरे उल्टे पैरों से
रेत बिछाती हूं
गीत उड़ाती हूं।