भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"डर लगता है / अर्चना कुमारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कुमारी |अनुवादक= |संग्रह=प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:02, 27 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

खुद से ही
डरने लगी हूं आजकल
कि न जाने कब
मोहब्बत मांगू तो
जारी हो कोई अदालती फरमान
दस्तावेजों में जिक्र हो
मेरी नादानियों का
मेरी मासूमियत करार कर दी जाए
गुनाहगार
कि कब बचपने को बेवकूफी
कह दिया जाएगा
और कह दिया जाएगा शातिर मुझे
तल्ख भाषाएं
बोलता हुआ अजनबी
कभी अपना रहा है शायद
ये आखिरी गुनाह मेरा
जिस पर चीख रहे हो तुम
मुझे डर लगता है
सन्नाटों से
चीखों से
चुप्पी से
तल्खियों
प्रेम से...।