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"इज़्ज़तपुरम्-12 / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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जीवन के प्रथम
कटु- अनुभव के
छोर पर
निर्जन में खड़ी
रग -रग दुखाती
अबोध से
थोड़ी बड़ी
विचारधारा
कभी निज की
कभी परिवार की
कभी क्रूर दुनिया की
सेाच में
डूबती
डतराती
बढ़ती है आगे
मँगतों के
जीवन में
कैसा विराम?